Subh Prabhat Darshan Images
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।
यदि तराजू के एक पलड़े पर स्वर्ग के सभी सुखों को रखा जाये,और मुक्ति के सुख को रखा जाये; तब भी वह एक क्षण के सतसंग से मिलने बाले सुख के बराबर नहीं हो सकता।
जय बजरंग बली! हनुमान जन्मोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। इस पवित्र अवसर पर हम सभी एक साथ श्री हनुमान जी के पवित्र जन्म की खुशी और उत्साह का आनंद लें। यह दिन हमें संकटों से मुक्ति और भक्ति के मार्ग पर चलने का प्रेरणा देता है। जय श्री राम! जय हनुमान!
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
आज जब हर एक मंदिर में राम की ध्वनि गूंज रही है, हर एक दिल में उनके भक्ति का उत्साह उमड़ रहा है। राम नवमी के पावन पर्व पर, आपके जीवन में भगवान राम की कृपा सदा बनी रहे, और आपके सभी मंगलकामनाएं पूरी हों। जय श्री राम!
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
नमो नमामि लक्ष्मीकान्तं श्रीसत्यानन्द् पुरातनम्।
सर्वत्रं सर्वेषूपलब्धं अत्योदारं अतिनिर्मलम।।
सब सुख लहैं तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल-बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम पाहीं॥
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
तावत्प्रीति भवेत् लोके
यावद् दानं प्रदीयते।
वत्स: क्षीरक्षयं दृष्ट्वा
परित्यजति मातरम्।भावार्थ:- “लोगों का प्रेम तभी तक रहता है, जब तक उनको कुछ मिलता रहता है। गाय का दूध सूख जाने के बाद बछड़ा तक माँ का साथ छोड़ देता है।”
योगयुक्तो विशुद्धात्मा
विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा
कुर्वन्नपि न लिप्यते।।भावार्थः- जो योग का आचरण करता है, जिसका हृदय शुद्ध है, जिसने स्वयं को जीत लिया है, जो जितेंद्रिय है और जिसकी आत्मा सभी प्राणियों की आत्मा बनी है, वह मनुष्य कर्म करता हुआ भी अलिप्त रहता है।
(श्रीमद्भागवत गीता)
अद्भिर्गात्राणि शुद्ध्यन्ति
मनः सत्येन शुध्यति,
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा
बुद्धिर्ज्ञानेन शुद्ध्यति।भावार्थ– शरीर की शुद्धि जल से होती है। मन की शुद्धि सत्य भाषण से होती है। जीवात्मा की शुद्धि का साधन विद्या और तप हैं। और बुद्धि की स्वच्छता ज्ञानार्जन से होती है।
एकान्तेन हि विश्वासः
कृत्स्नो धर्मार्थनाशकः।
अविश्वासश्च सर्वत्र
मृत्युना च विशिष्यते।।भावार्थः- “किसी पर अत्यधिक विश्वास करना, धर्म और अर्थ दोनों का नाश करने वाला होता है और सर्वत्र अविश्वास भी मृत्यु से बढ़कर है। अर्थात अत्यधिक विश्वास एवं अविश्वास दोनों ही हानिकारक है। सावधानी आवश्यक है।
उद्द्मेन हि सिध्यन्ति
कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य
प्रविश्यन्ति मुखे मृगाः।।भावार्थ :- परिश्रम करने से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है, केवल कल्पना करने से कोई मनोकामना पूर्ण नही हो सकती। जिस प्रकार सोए हुए शेर अर्थात जंगल के राजा के मुख में भी हिरण स्वयं प्रवेश नही करता, शेर को भी अपनी भूख शांत करने के लिए शिकार करना ही पड़ता है।
सहसा विदधीत न क्रियाम
विवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं
गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।भावार्थ :- जीवन में कभी भी भावावेश में आकर कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि आवेश में अविवेक उत्पन्न होता है और अविवेक ही विपत्तियों का कारण है। जो व्यक्ति सोचकर, धैर्यपूर्वक कार्य करता है, वह सदैव सुखी एवं समृद्घ रहता है।
उदयेन्नेव सविता पद्मेष्वर्षयति श्रियम्।
विभावयन्समृद्धीनां फलं सुहृदनुग्रहम्।।जिस प्रकार प्रातःकाल उदय होते ही सूर्य, कमल पुष्पों के ऊपर अपनी किरणों की बौछार के रूप में अपनी कृपा और प्रसन्नता प्रदान करता है, उसी प्रकार समृद्ध तथा सहृदय व्यक्ति भी अपने संपर्क में आने वालों को अनुग्रहीत कर सुशोभित होते हैं।
प्रियो भवति दानेन
प्रियवादेन चापरः,
मन्त्रं मूल बलेनान्यो
यः प्रियः प्रिय एव सः।भावार्थ – कुछ लोग उपहार देने पर प्रिय बनते हैं जबकि कुछ मनोहर बातों से, कुछ अन्य मन्त्रबल से प्रिय बनते हैं, पर जिन्हें आप प्रिय हैं, वो आपके प्रिय ही हैं (बिना कुछ किये ही)।
इस लोक में ज्ञान के समान पवित्र दूसरा कोई साधन नहीं है, शास्त्रों में विज्ञान को समस्त लोकों की प्रगति के लिए निश्चित किया गया है।
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
फल से आच्छादित वृक्ष सदैव झुक जाते हैं और बुद्धिमान लोग विनम्र हो जाते हैं। किन्तु सूखी लकड़ी और मूर्ख काटने पर भी नहीं झुकते हैं।
इस ब्रह्मांड के सभी अणु के स्वामी ईश्वर ही है। सारे संसार के आनंद जरूर लीजिये, किन्तु त्याग की भावना से। कभी भी यह नही मानना कि संसार की वस्तुएं केवल हमारी है, उस पर दूसरों का भी इतना ही अधिकार है। उनके अधिकार को कभी मत छीन लेना।
Subh Prabhat Shloka
बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रिय निग्रह, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम, कम व उचित बोलना, सामर्थ्य अनुसार दान और कृतज्ञता… ये आठ गुण पुरुष की ख्याति, प्रतिष्ठा एवं व्यक्तित्व को उज्ज्वल करते हैं।
अर्थनाशं मनस्तापम्,
गृहे दुश्चरितानि च,
वञ्चनं चापमानं च,
मतिमान्न प्रकाशयेत्।भावार्थः- बुद्धिमान व्यक्ति हानि, मन के दुःख, घर की कलह, धोखे और अपमान को गुप्त रखता है, कभी भी किसी को नहीं बताता।
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